Tuesday, January 31, 2023

कोटा की अबली मीणी के अमिट प्रेम की कहानी

कहते हैं अबली की सुंदरता की तुलना नहीं की जा सकती थी। वो इतनी सुंदर थी की कोटा के महाराव मुकुन्द सिंह उसे देखते ही अपना दिल हार बैठे थे। महाराव उस सुंदरी पर ऐसे मोहित हुए और उसके बाद प्रेम कथा बनी वो आज भी लोगों द्वारा सुनी सुनाई जाती है। 


राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 12 पर कोटा-झालावाड़ मार्ग मे दरा के पास इस अमिट प्रेम कहानी के इतिहास को सजोए हुए अबली मीणी का महल खड़ा हुआ है। इतिहासकार जनरल सर कनिंघम ने भी अपनी किताब “रिपोर्ट ऑफ इंडियन आर्कियोलोजिकल सर्वे” में किया है। इस किताब के अनुसार कोटा के महाराव मुकुंदसिंह ने अपनी प्रेयसी अबली मीणी के लिए दरा के सुरम्य जंगल में इस महल का निर्माण करवाया था। मुकुंदसिंह कोटा के संस्थापक माधोसिंह के पुत्र थे।


कैसे हुए महाराव अबली पर मोहित 

महाराव मुकुन्द सिंह अपने शासन के समय दरा के जंगलों मे शिकार खेलने आया करते थे। ऐसे ही एक बार शिकार के समय उनकी नजर जंगल मे एक सुंदर महिला पर पड़ी। वो महिला अपने सर पर दो घड़े लिए हुए थे और दो लड़ते हुए सांडो को उनके सींगों से पकड़ कर उनकी लड़ाई छुड़ा रही थी। 

महाराव इस महिला की सुंदरता और बहदुरी देखकर आश्चर्यचकित रह गए। खैराबाद की रहने वाली इस बहादुर महिला का नाम अबली मीणा था। अबली पर मोहित राव मुकुंद उसे हर कीमत पर पाना चाहते थे और उन्होंने अबली के समक्ष प्रेम का प्रस्ताव रखा। अबली ने उनके प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया लेकिन एक शर्त रखी की जिस जगह वे सबसे पहली बार मिले थे उस जगह पर अबली के लिए एक महल बनाया जाये। महल मे प्रतिदिन रात्रि मे एक दीपक को ऐसे स्थान पर जलाया जाये जहां से उसकी रोशनी अबली के गाँव खैराबाद तक दिखाई दे। 


महाराव ने अबली की शर्त के अनुसार जंगल मे महल का निर्माण करवाया इस महल को अबली मीणी के महल के नाम से जाना जाता है। 


अबली मीणा का महल 

अबली मीणा का महल पहाड़ पर बना दो मंजिला महल है। जिसमें नीचे आमने-सामने दो चौबारे हैं। दोनों चौबारों के बीच में एक तिबारी है। महल में स्नान आदि के लिए एक चौकोर कुंड भी बनाया गया था। तथा शेष स्थान पर दास-दासियों के लिए मकान बनाए गए थे। महल की सुरक्षा के लिए ऊंची चारदीवारी बनाई गई थी। यह अबली मीणी का महल आज भी इधर से गुजरने वाले राहगीरों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कुछ समय पूर्व ही इस महल का जीर्णोद्धार कराया गया है।








मुकुंदरा 

महाराव मुकुन्द के नाम से ही आज इस वन का नाम रखा गया है। महाराव मुकुंद ने स्वयं के नाम पर भी यहां मुकुंदरा नाम से गांव बसाया था, जिसे वर्तमान में हम दरा गांव के नाम से जानते हैं।

महाराव मुकुंद की 1657 में उज्जैन के पास धर्मद स्थान पर युद्ध में मृत्यु हो गई। इसके बाद कोटा में अंतिम संस्कार किया गया। वहीं अबली भी अन्य रानियों व खवासिनों के साथ सती हो गई। आज राव मुकुंद व अबली दोनों नहीं हैं, लेकिन उनके प्रेम की दास्तान को यह महल आज भी बयां करता है। महल में वो स्थान अभी भी मौजूद है, जहां प्रतिदिन रात को दीपक जलाया जाता था। इस महल में दीपक जलाने की परंपरा अबली के निधन के बाद भी कई वर्षों तक अनवरत रूप से जारी रही थी।


शादीशुदा थी अबली, पति को मिली थी जागीर 

बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि अबली शादीशुदा थी। एक रात को अबली के पति ने राव मुकुंद पर छुर्रे से जानलेवा हमला कर दिया था। जिसे सुरक्षाकर्मियों ने नाकाम कर दिया। राव मुकुंद ने अबली के पति को खुश करने के लिए उसे दरा घाटी की जागीर दे दी। साथ ही यह हक भी दिया कि जो भी इस मार्ग से गुजरे, उससे अबली का पति शुल्क वसूल करे। उस समय हाडौती-मालवा को जोड़ने के लिए यही एक मात्र मार्ग था।

Monday, July 30, 2018

हंसी मज़ाक से भरपूर 3D एनीमेशन का पहला एपिसोड

लीजिये 3D Toons का पहला कॉमेडी एनीमेशन । इस विडियो मे एक पिता अपने बच्चे को नए स्कूल मे एडमिशन के लिए ले जाता है। 
उसके बाद क्या क्या होता है उसके लिए ये विडियो देखिये 



Monday, June 04, 2018

भूपेन हजारिका के गीत डोला हो डोला के बोल Bhupen Hazarika song Dola ho Dola hindi version lyrics

भूपेन हजारिका का गीत डोला हो डोला कहारों की स्थिति का सचित्र वर्णन करता है
यह गीत भूपेन हजारिका की गीत एल्बम "मैं और मेरा साया" का है। इस गीत को हिन्दी मे अनुवाद गुलजार ने किया है।  इस गीत को गाया भी भूपेन हजारिका ने है और इस गीत की रचना भी उन्होने ही की है।

गीत - डोला हो डोला (Song - Dola ho Dola)
गायक - भूपेन हजारिका (Singer - Bhupen Hazarika)


हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया
हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया
हे डोला हे डोला हे डोला हे डोला

आँके बाँके रास्तों पे कान्धे लिए जाते हैं
राजा महाराजाओं का डोला
हे डोला हे डोला हे डोला

देहा जलाइके, पसीना बहाइके
दौड़ाते हैं डोला
हे डोला हे डोला हे डोला
हे हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया
हे हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया

ऊंचे हैं, नीचे हैं, रास्तों के पाँव रे
कान्धो से गिरे नहीं डोला

ऊंचे हैं, नीचे हैं, रास्तों के पाँव रे
कान्धो से गिरे नहीं डोला

ज़िंदगी कहार की, चढ़ते पहाड़ की
दौड़ाते हैं डोला 
हे डोला हे डोला हे डोला
आँके बाँके रास्तों पे कान्धे लिए जाते हैं
राजा महाराजाओं का डोला
हे डोला हे डोला हे डोला
हे हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया
हे हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया

पालकी से लहराता, गालों को सहलाता
रेशम का हल्का दिलासा

किरणों की झिलमिल मे
पर्दों के मखमल मे
आसान बिराजे हो राजा

बैसाख गुजरा, एक साल उतरा
देखा नहीं तन पे धागा
नंगे हैं पाँव पर धूप और छाँव पर
दौड़ाते हैं डोला 
हे डोला हे डोला हे डोला
आँके बाँके रास्तों पे कान्धे लिए जाते हैं
राजा महाराजाओं का डोला
हे डोला हे डोला हे डोला
हे हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया
हे हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया

सदियों से ऊँघते हो
पालकी हिलोरे मे
देह मेरा गिरा - हो गिरा - हो गिरा
जागो जागो, देखो कभी
मोरे धनवाले राजा
कोड़ियों के दाम कोई मरा - हो मरा

चोटियाँ पहाड़ की सामने है अपने
पाँव मिला लो कहारों
चोटियाँ पहाड़ की सामने है अपने
पाँव मिला लो कहारों

कान्धे से जो फिसला
नीचे जा गिरेगा
राजाओं का आसान यारों
नीचे जा गिरेगा डोला
राजा महाराजाओं का डोला
हे डोला हे डोला हे डोला
आँके बाँके रास्तों पे कान्धे लिए जाते हैं
राजा महाराजाओं का डोला
हे डोला हे डोला हे डोला
देहा जलाइके, पसीना बहाइके
दौड़ाते हैं डोला
हे डोला हे डोला हे डोला
हे हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया
हे हईया ना, हईया ना, हईया ना, हईया


Wednesday, November 22, 2017

आज गूगल का डूडल माना रहा है रखमाबाई राऊत का 153 वां जन्मदिन

रुखमाबाई राऊत(1864-1955) भारत की प्रथम महिला चिकित्सक थीं।

वह एक ऐतिहासिक कानूनी मामले के केंद्र में भी थीं, जिसके परिणामस्वरूप 'एज ऑफ कॉन्सेंट एक्ट, 1891' नामक कानून बना।





जब वह केवल ग्यारह वर्ष की थीं तबी उन्नीस वर्षीय दुल्हे दादाजी भिकाजी से उनका विवाह कर दिय गया था। वह हालांकि अपनी विधवा माता जयंतीबाई के घर में रहती रही, जिन्होंने तब सहायक सर्जन सखाराम अर्जुन से विवाह किया। जब दादाजी और उनके परिवार ने रूखमाबाई को अपने घर जाने के लिए कहा, तो उन्होंने इनकार कर दिया और उनके सौतेले-पिता ने उसके इस निर्णय का समर्थन किया। इसने 1884 से अदालत के मामलों की एक लंबी श्रृंखला चली, बाल विवाह और महिलाओं के अधिकारों पर एक बड़ी सार्वजनिक चर्चा हुई। रूखमाबाई ने इस दौरान अपनी पढ़ाई जारी रखी और एक हिंदू महिला के नाम पर एक अख़बार को पत्र लिखे। उसके इस मामले में कई लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ और जब उस ने अपनी डाक्टरी  की पढ़ाई की इच्छा व्यक्त की तो लंदन स्कूल ऑफ़ मेडिसन में भेजने और पढ़ाई के लिए एक फंड तैयार किया गया। उसने स्नातक की उपाधि प्राप्त की और भारत की पहली महिला डॉक्टरों में से एक (आनंदीबाई जोशी के बाद) बनकर 1895 में भारत लौटी, और सूरत में एक महिला अस्पताल में काम करने लगी।



Saturday, November 18, 2017

वी शांताराम के जन्मदिन पर गूगल के होमपेज पर उनका डूडल

भारतीय फिल्म निर्माता शांताराम राजराम वानकुदरे के 116 वें जन्मदिन  अवसर पर गूगल ने अपने होमपेज पर उनका डूडल लगाया है।
पद्म विभूषण से सम्मानित वी शांताराम का  जन्म 18 नवंबर 1901 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था. वी शांताराम का मूल नाम राजाराम वानकुदरे शांताराम था, आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ गई थी।
र्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार वी. शांताराम 30 अक्टूबर 1990 को इस दुनिया से विदा कर गए।
उनकी प्रमुख फिल्में

खूनी खंजर
धर्मात्मा
आदमी
डॉ कोटनिस की अमर कहानी
नवरंग
गीत गाया पत्थरों ने
दो आँखें बारह हाथ
जल बिन मछ्ली नृत्य बिन मछली
पिंजरा
झांझर